CPCT Exam Reading Comprehension Free Online Test
06th November 2022 Shift 01 Previous Year Question Paper
दिए गए गद्यांश को पढ़िए और उसके बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
जैसे-जैसे नदियां मरती जाती हैं, अपनी आजीविका के लिए उनपर आश्रित लाखों लोगों की जीवनशैली भी बदलती बदलने लगती है। यह परिवर्तन कुछ लोगों के लिए जानलेवा भी होता है।
भारत के तेरह नदी बेसिन पेयजल जल के अस्सी प्रतिशत की आपूर्ति करते हैं और कुल आबादी के लगभग अस्सी प्रतिशत भाग का निवास स्थान हैं। ये सभी
बेसिन (मुख्य रूप से शहरों और औद्योगिक इलाकों के पास फैले हुए) इतने प्रदूषित हैं कि अपशिष्टों पर आश्रित रहने वाले जीवाणु भी इस जल में आसानी से फलफूल सकते हैं। इन जीवाणुओं की संख्या सुरक्षित स्तर से बीस से हजार गुना अधिक है।
कोई सटीक आंकड़े तो नहीं हैं लेकिन त्वचा रोगों और त्वचा विशेषज्ञों की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है, खासकर उन शहरों, रों कस्बों में जो इन नदियों के किनारे बसे हुए हैं। छोटे शहरों में जल जनित बीमारियों जैसे पेचिश और पीलिया का कारण प्रदूषित जल ही होता है। इन छोटे शहरों और गाँवों में पानी सीधे नदियों से ले लिया जाता है और इसका उपभोग करने से पहले इसे उपचारित या साफ भी नहीं किया जाता है।
जुलाई 1996 में, मध्य प्रदेश में विदिशा शहर में पानी की आपूर्ति दो दिनों के लिए रोक दी गई थी क्योंकिक्यों लोगों ने बेतवा नदी में हजारों मरी हुई मछलियों को तैरते
हुए देखा था। नदी का पानी ही उनके पेयजल का एकमात्र स्रोत था। और उसमें में लाखों मछलियां मरी हुई पड़ी थी।
1970 के दशक में आगरा और इलाहाबाद के बीच यमुना के किनारे 570 से अधिक गाँव थे। लेकिन आप शायद ही कभी पानी के इस फैलाव पर मछली पकड़ने वाली कोई नाव देख सकें। यहाँ पानी की मात्रा में कमी आई है और यह पूरी तरह प्रदूषित है। यह मछुआरे साइकिल-रिक्शा चला कर, भीख माँग कर या दिहाड़ी मजदूर के रूप में अब अपनी आजीविका कमाते हैं।
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